Atma Madhepura
Welcome to Atma Madhepura portal

मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं प्राचीन तरिके से

0

कृषि में जिस प्रकार से आधुनिकरण का चलन बढ़ गया है ऐसे में किसान भाई भी काफी जागरूक हो गए हैं और तो और सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई किसान भाई आज कल कृषि में नवाचार करते दिख जायेंगे ऐसे में हम कृषि वाणी की टीम भी आप भारत के सभी किसान भाइयों के लिए हमेशा से कुछ नया ले कर आया है और आज कृषि में कई ऐसी चुनौतियाँ भी हैं जिनसे हम आपको रु ब रु कराएंगे जी हाँ किसान भाइयों कृषि के क्षेत्र में मुख्य समस्या है मिटटी की उर्वरा शक्ति को जैविक तरिके से कैसे लम्बे समय तक मजबूत रखा जाए.

आज जिस प्रकार से रासायनिक खाद व् कीटनाशकों का लगातार उपयोग पिछले कई सालों से बढ़ गया है जिसके कारण आज हमारी मिटटी की उर्वरा क्षमता दिन प्रति दिन गिरती जा रही है जिससे हमारे किसान भाइयों को भविष्य में कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है या कई राज्यों के किसान भाई इसका सामना कर रहे होंगे क्योँकि रासायनिक दवाओं और खाद के प्रयोग से किसानो को अच्छा उत्पादन तो मिल रहा है पर इसका आम जनजीवन पर भी असर पड़ रहा है और सबसे ज्यादा दोहन जो है वो मिटटी और पौधों का हो रहा है तो किसान भाइयो को आज मिटटी के जरूरत अनुसार पोषक तत्वों की सबसे ज्यादा कमी होती जा रही है यही किसानों के लिए भी यह बड़ी चिंता का विषय बन गया है

मिटटी की उर्वरता का सबसे मुख्य असर पौधों के जीवन के साथ साथ उत्पादन पर भी पड़ता है क्यूंकि मिटटी में पौधों के जरुरत के अनुरूप पोषक तत्व की कमी होती जा रही है रासायनिक उर्वरक से मिटटी में मुख्य रूप से पोषक तत्वों में नाइट्रोजन,फास्फोरस,पोटाश, जिंक की पूर्ति होती है पर मुख्य ये है की इन रासायनिक उर्वरक से मिटटी प्रकृति शक्ति को मजबूत रखना तथा जल का संचयन करना एवं मिटटी में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्मजीवों को बढ़ाने में कोई भी मदद नहीं मिलती पर अपने आने वाले भविष्य को देखते हुए हमें रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग को रोकने का प्रयास करेंगे साथ ही मिटटी की उर्वरा शक्ति को बढ़ने के लिए जैविक या प्रकृतिक तत्वों का सहारा लेंगे तभी हम अच्छे से फसलों का उत्पादन ले सकेंगे

आदि काल से मिटटी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए हरी खाद का प्रयोग किया जाता रहा है जिनमें कई प्रकार के सनई, ढैंचा घास उपयुक्त माने जाते हैं और यह काफी कारगर उपाय है जिससे मिटटी में जरूरत के अनुसार पोषक तत्वों की मात्रा बनी रहती है खेत में उगाई जाने वाली हरी खाद: भारत के अधिकतर क्षेत्र में यह विधि लोकप्रिय है इसमें जिस खेत में हरी खाद का उपयोग करना है उसी खेत में हरी खाद के फसल को उगाकर एक तय समय के बाद पाटा चलाकर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है| वर्तमान समय में पाटा चलाने व हल से पलटाई करने के बजाय तकनीक के प्रयोग में उपयुक्त रोटा वेटर का उपयोग करने से खड़ी फसल को मिट्टी में मिला देने से हरे घास का मिश्रण जल्दी से हो जाता है और मिटटी कि जरुरत के अनुसार पोषकतत्वों की पूर्ति हो जाती है दक्षिण भारत में हरी खाद की फसल अन्य खेत में उगाई जाती है, और उसे उचित समय पर काटकर जिस खेत में हरी खाद देना रहता है उस समय मिटटी कि जुताई कर मिला दिया जाता है|

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.